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मोहे लगे प्यारे सभी रंग तुम्हारे कि पग पग लिए जाऊँ तेरी बलइयाँ .... तुम सुनो न , सुनते क्यों नहीं , क्या तुम्हें आवाज नहीं आ रही है , क्या तुम अब ऊंचा सुनने लगे हो शायद हाँ तभी तो तुम्हें न कोई आवाज आती है , न कोई अहसास होता है , हाँ तुम्हें कुछ भी महसूस नहीं होता है क्योंकि अगर तुम्हें महसूस हो रहा होता तो तुम न इतने दर्द देते , न ही दुख देते , क्योंकि जब हामरी आँखों में इतने आँसू भर दिये कि मुझे दिखना भी बंद हो गया , दुनिया से मोह ही खत्म हो गया कुछ भी अच्छा नहीं लगना , और खुद में ही खो जाना ,,, वैसे खुद में खोना या खुद को जीना ही ईश्वर का सबसे बड़ा वरदान है ,,,, सीमा असीम 23,2,20
 सिस्टर आपने क्या कहा ₹50000 जमा किए हैं किसने और फेस भी सबमिट की है अभी तक का सारा खर्चा भी किया कौन है जिसने यह सब किया मुझे तो पता भी नहीं मैं तो कुछ नहीं किया जबकि रिस्पांसिबिलिटी तो मेरी ही है और इसका कोई भी नहीं है यहां पर ऐसा मेरी है और मैं भी उसका सारा खर्चा उठा उठाऊंगा मुझे बताओ प्लीज किसने किया है यह सब जिससे कि मैं उसको यह पैसे वापस कर यह तो नहीं बता मुझे लेकिन जो शायद उनको एडमिट करके गया था उसी ने ही सारे पैसे जमा किए हैं और अब मैं नहीं जानती कि वह कहां है इनको एडमिट कर के पैसे जमा करके और वह वापस चला गया था तो इसके लिए आपको खुद ही मालूम करना पड़ेगा पता नहीं और कितने पैसे खर्च होंगे पता नहीं रिपोर्ट्स में क्या कमी आई हो क्या प्रॉब्लम हो क्यों आपको नहीं पता इसमें क्या है नहीं मैं कुछ नहीं बता सकती आपको सर के पास जाकर ही सारी डिटेल्स लेनी होगी सर मतलब डॉक्टर हां डॉक्टर के पास चाहिए वही आपको सब कुछ बताएंगे ईशा होश में तो आ गई है ना सिस्टर इतना बता दो नहीं वह कहां भी होश में नहीं आई है मैं तो उसकी भी खुशी नहीं चाहिए अगर वह होश में आ जाए तब तो कोई दिक्कत ही नहीं है क्योंकि उसके

मौसम

मौसम का रुख हमेशा बदलता रहेगा  आज सर्द तो कल गर्मी होता रहेगा  बस तुम न बदलो कभी गुजारिश है  सुख दुःख तो यूँ आता जाता रहेगा!! सीमा असीम  2,5,24

स्त्री

 दुनिया में होने वाली हर बात से है वो बेखबर  उसे नहीं पता कि आज है मजदूर दिवस  जहां दुनिया में राष्ट्रीय अवकाश मनाया जा रहा है  वहीं पर वह सुबह से लगी है घर के कामों में  वह स्त्री है तो उसका काम है घर की देखभाल करना  घर की साफ सफाई करना  उसमें सुबह उठकर सबसे पहले घर में फूल झाड़ू से सारे घर की धूल झाड़ दी है और चमका दिया कोने-कोने को  बड़े बुजुर्गों की झिडकियां भी सह लेती है  और चुपचाप कोने में जाकर रो लेती है  कि नहीं सिखाया उसे बड़ों को जवाब देना  पलट कर कुछ कहना भी नहीं  उसे बस इतना पता है कि वह हाउसवाइफ है  तो उसे घर के सारे काम करने हैं  साफ सफाई से लेकर  खाना बनाने से लेकर  हर किसी की देखभाल करनी है  हर किसी को उसका उचित मान सम्मान देना है  वो इस बात का भी शुक्र मानती है  कि नहीं है कामकाजी  वरना उसे काम से लौटकर देखना पड़ता  घर गृहस्ती को  चूल्हे चौके को और  बाल बच्चों को भी  बसअब लिपत है घर में ही  खुश है और घर के काम करने में सुखी है  क्योंकि हाउसवाइफ है और घर का काम करना है उनकी नियति है  उनके होने से ही तो बच्चों में है हंसी-खुशी और  पुरुषों में है पौरुषता  बड़े बुजुर्गो में

पतझड़

 पतझड़ तो चला गया है दुम दबाकर  बसंत ने अपना साम्राज्य फैला दिया है  दस्तक दे दी हैआहिस्ता से  गर्मी ने  सूरज की किरणों ने व्याकुल कर दिया  पशु पक्षी के साथ साथ हम इंसान भी  तपती  धूप से बचने को छाया की  ओट तलाशने लगे हैं  मौसम की मार ने सदा गरीबों और  निरीहों को ही अपना शिकार बना लिया  !!! सीमा असीम  ३०,4,२४

मुक्तक

 मुस्कुराते हुऐ हर ग़म को छुपा लेते हैं   चाँद तारों को अपना दर्द बता देते हैं   कर लेते हैं बात बड़ी ख़ामोशी से हम   तुम्हें यूँ ख्वाबों ख़्यालों में सजा लेते हैं!! सीमा असीम  29,4,24

तुम

 तुम भी मुझे यूँ ही सोचते होंगे  ढलती शाम को मचलते होंगे  नहीं पाते होंगे चैन भीड़ में भी  एक झलक पाने को तरसते होंगे  सीमा असीम  27,4,24
 सुरमई शाम में तुम याद बनकर चले आते हो  जब रात होती है तो ख्वाब में चले आते हो  रोशन है मेरा तन मन तुम्हारे प्रेम की खातिर   सुबह आती है तो किरण बनकर चले आते हो   यूं ही सदा आते हो तुम जाते तो हो नहीं कभी   फिर क्यों मैं तुम्हें कहती हूं तुम बिरहा दे जाते हो..